उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) की केंद्रीय महामंत्री किरन रावत ने उठाई शराबबंदी की मांग-Newsnetra


उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) की केंद्रीय महामंत्री किरन रावत द्वारा उठाई गई शराबबंदी की मांग उत्तराखंड की सामाजिक और आर्थिक संरचना से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। उनका यह बयान राज्य सरकार की नई आबकारी नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जो 5000 करोड़ रुपये के राजस्व लक्ष्य पर आधारित है।
शराबबंदी की मांग और उसके तर्क
1. महिलाओं पर प्रभाव – किरन रावत ने दावा किया कि शराब की वजह से प्रदेश की महिलाएं पारिवारिक और आर्थिक रूप से प्रभावित हो रही हैं। घरेलू हिंसा, परिवारों के बिखरने और आर्थिक अस्थिरता जैसी समस्याएं शराब की वजह से बढ़ रही हैं।
2. राज्य सरकार की नीति पर सवाल – उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि हर साल आबकारी से होने वाली आय को बढ़ाने के लक्ष्य तय किए जाते हैं, जिससे राज्य में शराब की उपलब्धता बढ़ रही है।
3. विकल्प के रूप में प्रत्यक्ष लाभ – उन्होंने सुझाव दिया कि जब तक राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू नहीं होती, तब तक आबकारी से होने वाली 5000 करोड़ रुपये की आय को महिलाओं के खाते में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, ताकि वे इससे लाभान्वित हो सकें।
सरकार की दलील और आर्थिक पक्ष
उत्तराखंड सरकार के लिए आबकारी से मिलने वाला राजस्व महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होता है। आबकारी कर से मिलने वाली राशि का उपयोग कई बुनियादी ढांचा और कल्याणकारी योजनाओं में किया जाता है। यदि सरकार पूर्ण शराबबंदी लागू करती है, तो उसे इस राजस्व के विकल्प तलाशने होंगे।
शराबबंदी की व्यवहारिकता
अन्य राज्यों के उदाहरण – बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में शराबबंदी लागू की गई है, लेकिन वहां अवैध शराब तस्करी और अन्य अपराधों में वृद्धि देखी गई।
राजस्व घाटा – उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए 5000 करोड़ रुपये का नुकसान अन्य करों और संसाधनों से पूरा करना एक चुनौती हो सकता है।
सामाजिक प्रभाव – शराबबंदी से महिलाओं और कमजोर वर्गों को राहत मिल सकती है, लेकिन इसकी प्रभावी निगरानी और क्रियान्वयन सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।
यूकेडी की यह मांग निश्चित रूप से एक बड़े सामाजिक मुद्दे को उठाती है, लेकिन इसका आर्थिक और प्रशासनिक पहलू भी महत्वपूर्ण है। यदि शराबबंदी की दिशा में कदम बढ़ाए जाते हैं, तो राज्य सरकार को इसके आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए वैकल्पिक उपाय तलाशने होंगे, ताकि विकास कार्य प्रभावित न हों।