मुंबई में आपातकाल-विरोधी मॉक संसद: राष्ट्रीय महामंत्री दीप्ति रावत भारद्वाज ने संविधान की पुकार दोहराई-Newsnetra
लोकतंत्र पर सबसे क्रूर प्रहार था आपातकाल: दीप्ती
भारतीय जनता पार्टी की महिला मोर्चा द्वारा आज मुंबई में एक प्रभावशाली मॉक संसद का आयोजन किया गया, जिसमें 1975 में लगाए गए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर लोकतंत्र की रक्षा के संकल्प के साथ एक ऐतिहासिक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस आयोजन में महिलाओं, युवाओं, छात्राओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संविधान प्रेमियों की सक्रिय व सार्थक भागीदारी रही।










महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमती दीप्ति रावत भारद्वाज ने कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि यह आयोजन केवल इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि चेतावनी है कि लोकतंत्र की आत्मा को कुचलने वाले संकेतों को समय रहते पहचानना और उनका प्रतिकार करना हर जागरूक नागरिक का दायित्व है। उन्होंने कहा कि आपातकाल एक सत्ता-केंद्रित षड्यंत्र था और हमारा उत्तर संविधान-केंद्रित जनजागरण है।
मॉक संसद में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि 25 जून 1975 की रात, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की चुनावी वैधता पर न्यायिक प्रश्नचिह्न लगा, तब उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं को दरकिनार कर आपातकाल लागू किया, जो राष्ट्रहित में नहीं, बल्कि निजी सत्ता बचाने हेतु उठाया गया कदम था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस तानाशाही व्यवस्था को लागू करने में सक्रिय भूमिका निभाई और पूरे देश में भय, सेंसरशिप और दमन का वातावरण बना दिया गया।
प्रेस की स्वतंत्रता को समाप्त कर विचारों पर कठोर सेंसरशिप थोप दी गई। न्यायपालिका को धमकाया गया, संसद को निष्क्रिय बना दिया गया, और एक लाख से अधिक विपक्षी नेताओं, पत्रकारों व आम नागरिकों को बिना मुकदमा जेलों में डाल दिया गया। प्रस्ताव में यह भी उल्लेख किया गया कि 42वें संविधान संशोधन द्वारा संवैधानिक मूल्यों को विकृत किया गया, गरीबों पर जबरन नसबंदी और झुग्गियों को उजाड़ने जैसे अमानवीय कृत्य किए गए, और यह कि कांग्रेस पार्टी ने आज तक उस आपातकालीन अवधि के लिए देश से बिना शर्त माफी नहीं मांगी।
मॉक संसद ने उन लाखों भारतीयों के साहस और संघर्ष को स्मरण किया जिन्होंने 21 महीनों तक दमन के बावजूद लोकतंत्र में अपनी आस्था बनाए रखी और 1977 के आम चुनावों में मतदान के माध्यम से लोकतंत्र की पुनर्स्थापना की।
सभा ने सर्वसम्मति से यह संकल्प पारित किया कि 25 जून को प्रतिवर्ष ‘तानाशाही के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा, ताकि देश उन भयावह दिनों को न भूले और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए सदैव सजग बना रहे।
कार्यक्रम का समापन संविधान की प्रस्तावना के सामूहिक वाचन और इस संकल्प के साथ हुआ कि लोकतंत्र न केवल एक शासन प्रणाली है, बल्कि भारत की आत्मा है और उसकी रक्षा हम सबकी साझा जिम्मेदारी है ।