मजाडा गांव तबाही के साए में: बादल फटने से उजड़ा गांव, पहाड़ों की दरारें बरपा रहीं खौफ-Newsnetra
देहरादून के सहस्रधारा से लगभग आठ किलोमीटर दूर स्थित मजाडा गांव, जो कभी अपनी हरी-भरी वादियों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता था, अब तबाही और खौफ का प्रतीक बन गया है। सोमवार की रात बादल फटने से आई आपदा ने इस खूबसूरत पहाड़ी गांव को खंडहर में बदल दिया।


तबाही का मंजर और टूटी उम्मीदें
गांव के घर टूटे पड़े हैं, कुछ मलबे के नीचे दब गए हैं। चारों ओर बिखरे बड़े-बड़े पत्थर और बोल्डर उस भयावह रात की गवाही दे रहे हैं। गांव के रास्ते बह चुके हैं, पशुओं के बाड़े उजड़ गए हैं और खेत मलबे में तब्दील हो गए हैं। जो कुछ घर सुरक्षित बचे हैं, उनके मालिक भी अब वहां ठहरने का जोखिम नहीं उठा रहे। लगभग 45 परिवारों में से ज्यादातर अब दूसरी जगह शिफ्ट हो चुके हैं।
कुछ लोग हर सुबह गांव लौटकर अपने मवेशियों को चारा-पानी दे रहे हैं, लेकिन रात होते ही भयावह खामोशी और पहाड़ों से आती दरारों की गूंज उन्हें वहां रुकने नहीं देती। स्थानीय निवासी सुमित्रा रावत ने कहा, “मजाडा में रहना अब सुरक्षित नहीं है। इतनी बड़ी आपदा पहले कभी नहीं आई। आपदा ने हमारा सब कुछ छीन लिया—रोजगार भी और घर भी।”
पहाड़ों में नई दरारें, खतरे की नई आहट
आपदा के बाद पहाड़ों में गहरी दरारें उभर आई हैं। ग्रामीण बताते हैं कि दरारें इतनी चौड़ी हैं कि उन्हें देखकर ही डर लगता है। यह खतरा सिर्फ बीती आपदा का नहीं, बल्कि भविष्य की संभावित तबाही का भी संकेत है। कमला देवी ने कहा, “अब गांव का हर कोना असुरक्षित है। कभी भी हादसा हो सकता है। ऐसे में कोई भी यहां रहना नहीं चाहता।”
सरकार से मांग: पूरे गांव को दूसरी जगह बसाया जाए
ग्रामीणों ने राज्य सरकार से मांग की है कि मजाडा गांव को पूरी तरह से किसी सुरक्षित स्थान पर बसाया जाए। लोग कहते हैं कि उनके पास लौटने के लिए अब कुछ भी नहीं बचा है—न आशियाना, न खेत और न ही रोजगार। कई परिवार अब रिश्तेदारों या अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं।
पर्यटन केंद्र से आपदा क्षेत्र तक
कभी मजाडा गांव सहस्रधारा आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। यहां की सुंदर वादियां, ठंडी हवाएं और शांत वातावरण लोगों को खींच लाता था। लेकिन अब वही वादियां खंडहरों और मलबे से पट चुकी हैं। तबाही के तीन दिन बाद भी ग्रामीणों के चेहरों पर दहशत साफ झलक रही है। बारिश की हर गड़गड़ाहट उन्हें उस भयावह रात की याद दिला रही है।
निष्कर्ष
मजाडा गांव की त्रासदी उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में आपदा प्रबंधन और सुरक्षित पुनर्वास की जरूरत को फिर से उजागर करती है। यह केवल एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन सैकड़ों बस्तियों की भी है, जो हर मानसून में बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ जैसे खतरों के साए में जीती हैं। अब ग्रामीणों की उम्मीदें सरकार और प्रशासन से जुड़ी हैं, जो उन्हें सुरक्षित भविष्य देने का वादा निभा सके।