अंतरिक्ष में परचम लहराने के बाद शुभांशु शुक्ला की गौरवपूर्ण वापसी,18 दिन बाद धरती पर लौटे अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला-Newsnetra
अंतरिक्ष में 18 दिन तक भारत का गौरव बढ़ाने के बाद शुभांशु शुक्ला आज सकुशल धरती पर लौट आए हैं। उन्होंने जब ड्रैगन अंतरिक्ष यान से बाहर कदम रखा, तो उनके चेहरे की मुस्कुराहट ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि भारतीय प्रतिभा अब अंतरिक्ष में भी अपना परचम लहरा रही है।
पहली बार गुरुत्वाकर्षण का अनुभव
18 दिनों तक शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने के बाद जब शुभांशु ने पृथ्वी पर पहला कदम रखा, तो यह पहली बार गुरुत्वाकर्षण का अनुभव था। उनकी बॉडी लैंग्वेज से यह साफ झलक रहा था कि वह इस बदलाव को महसूस कर रहे हैं — एक तरह की नई ऊर्जा, एक नई शुरुआत।
कौन हैं शुभांशु शुक्ला?
शुभांशु शुक्ला भारत के एक युवा अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्होंने अपने वैज्ञानिक शोध और प्रशिक्षण के दम पर अंतरिक्ष में यह ऐतिहासिक उड़ान भरी। उनका चयन NASA और ISRO के संयुक्त मिशन के तहत हुआ था, जिसमें उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त वैज्ञानिकों के साथ कार्य करने का अवसर मिला।
अंतरिक्ष में क्या किया रिसर्च?
इस मिशन के दौरान शुभांशु ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रयोग किए:
मानव शरीर पर शून्य गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव
सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में जैविक कोशिकाओं का व्यवहार
पृथ्वी से दूर माइक्रो ग्रेविटी लैब में खाद्य उत्पादन
अंतरिक्ष यात्रियों के लिए दीर्घकालिक जीवन समर्थन प्रणाली पर परीक्षण
उनकी यह रिसर्च आने वाले समय में मंगल और चंद्र मिशन के लिए आधार तैयार करेगी।
भारत के लिए क्यों है यह उपलब्धि महत्वपूर्ण?
शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में भेजे गए सबसे युवा भारतीय वैज्ञानिकों में से एक हैं।
उनका मिशन भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को वैश्विक पटल पर एक नई पहचान देता है।
भारत के युवाओं को विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रेरणा देने वाली यह उपलब्धि आने वाले दशकों में नवाचार और अनुसंधान को नई दिशा देगी।
भावुक क्षण
शुभांशु जब अंतरिक्ष यान से बाहर आए, तो उनकी आंखों में गर्व, उत्साह और भावुकता तीनों झलक रहे थे। उन्होंने हाथ हिलाकर अपने सहयोगियों और परिवार को धन्यवाद कहा और कहा —
“यह केवल मेरी नहीं, बल्कि पूरे भारत की जीत है।”
शुभांशु शुक्ला की वापसी भारत के लिए गौरव का क्षण है। अंतरिक्ष में उनकी सफलता न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के स्तर पर भी एक नई ऊंचाई है। अब उनकी यात्रा युवा वैज्ञानिकों के लिए एक प्रेरणा गाथा बन चुकी है।

