(संवाददाता रितिका पयाल राणा) देहरादून : देवभूमि से उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बाॅबी पंवार ने एक वोट- एक रोजगार आन्दोलन के संयोजक प्रवीण काशी को देहरादून से बनारस के लिए हरी झण्डी दिखाई।
यदि रोजगार को मौलिक अधिकार नहीं बनाया गया तो प्रवीण काशी प्रधानमंत्री मोदी की लोकसभा बनारस से बेरोजगारों के प्रतिनिधि के रूप में नामांकन करेंगे।
देवभूमि से उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ से हरी झण्डी लेकर प्रवीण काशी पहले राजघाट (दिल्ली), फिर मथुरा, अयोध्या होते हुए बनारस पहुंचेंगे।
प्रधानमंत्री ने 2 करोड़ रोजगार का वायदा किया लेकिन वास्तविकता 5 किलोग्राम अनाज है।
हम बेरोजगार अपना जीवन सम्मान के साथ जीना चाहते हैं। हम टैक्स पेयर बनना चाहते हैं। अमीरों के टैक्स पर मुफ्त अनाज, बिजली, पानी या बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहते। यदि हमारे सांसदों और विधायकों को लाखों रूपये वेतन और भत्ते मिल सकते हैं तो हम वोटरों को सम्मानजनक रोजगार क्यों नहीं?
देश में बहुत से कानून बने हैं लेकिन सम्मान से जीवन जीने के लिए सबसे जरूरी रोजगार को मौलिक अधिकार कानून नहीं बनाया गया। कानून बनाने का काम संसद का है देश के बेरोजगारों और उनके परिवारजनों की मांग है कि रोजगार मौलिक अधिकार बने। अब हम देश की संसद से रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने की मांग करते हैं।
यह आन्दोलन
जय श्री राम, जय श्री राम।
बूढ़ों को पेंषन, जवानों को काम के नारे के साथ गाँव-गाँव तक अपनी बात को पहुँचाकर जनता को जागरूक करने का काम करेगा।
अब से तीस वर्ष पहले शुरू की गई नव उदारवादी नीतियों (1991 में नरसिम्हाराव सरकार के वित्तमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह जो बाद में दो बार प्रधानमंत्री बने, के आर्थिक सुधारों जिसे मोदी सरकार ने दिन दुगुनी- रात चौगुनी गति से आगे बढ़ाया) के चलते हमारा देश (भारतवर्ष) अपने बच्चों की जिम्मेदारी छोड़कर पीछे हट गया और निर्दयी निजी क्षेत्र अपने कर्तव्यों (जिम्मेदारी) का वहन नहीं कर पाया।
इसके फलस्वरूप देश के प्राकृतिक संसाधनों की कीमत पर (हवा, पानी और मिट्टी को जहरीला बनाकर) महान सनातनी लोकतंत्र भारतवर्ष के 1%लोगों के लिए अपार दौलत का सृजन हुआ लेकिन बाकी 99% लोगों के सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी रोजगार का सृजन शून्य और नेगेटिव हो गया। परिणामस्वरूप माँ- बाप के लाडले और लाडली करोड़ों की संख्या डिप्रेशन में हैं तथा नशा, अपराध और आत्महत्या के रास्ते पर चलने को विवश है।
हम भारत के युवा, भारत के नागरिकों के लिए सरकार की इस गैरजिम्मेदाराना नीति और रवैये को अस्वीकार एवं निषेध करते हैं। साथ ही नये भारतीय रोजगार तंत्र (भा. र. त.) को बनाने का आह्वान करते हैं।
नये भा. र. त. (भारतीय रोजगार तंत्र) को बनाने का माँगपत्र-
1- वोटों से बनने और वोटरों के टैक्स से चलने वाली भारत सरकार को प्रत्येक वोटर के रोजगार के प्रति उत्तरदायी बनाएं।
2- इसका अर्थ है कि रोजगार सृजन करने की जिम्मेदारी सरकार और उसके विभिन्न विभागों और संस्थाओं और उनके निर्देशन में काम करने वाले बैंकों की है।
3- एक वोट पर एक रोजगार यानि सभी वोटरों के सम्मानजनक जीवन के लिए रोजगार मौलिक अधिकार बने।
4- बेरोजगारों की जनगणना तुरन्त की जाए।
5- सभी खाली पदों को पारदर्शिता के साथ तुरन्त भरा जाए।
6- सभी गिग/प्लेटफाॅर्म/ऐप/खेत/दुकान/मकान/रेहड़ी/कुली/कम्पनी/एन.जी.ओ./ट्रस्ट/राजनीतिक दलों व अन्य सभी क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों को कर्मचारी की मान्यता और दर्जा दो तथा उनके परिवार की सामाजिक सुरक्षा की गारन्टी करो।
7- न्यूनतम मजदूरी की जगह “आजीविका मजदूरी कानून” बने व इसके क्रियान्वयन के लिए ब्लाॅक स्तर एवं नगर स्तर पर ट्रिब्युनल बनाया जाए तथा पंचायत एवं नगरपालिका स्तर पर रोजगार कार्यालय बने।
इस बार जब राजनीतिक दल और चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार आपके सामने आयें तो उनको निर्देश दें कि वे उपरोक्त नीति को स्वीकार करें और निर्वाचित होने पर संसद और सरकार से इस नई नीति और कार्यक्रम को लागू करवाकर हर हाथ को काम दिलवाने की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करेंगे।