न्यूज नेत्रा, मीडिया हाउस
आंख अभी खुली नहीं थी कि मेरे अपने गये कहां, बूढ़ा पर्वत रोता है कि मेरे अपने गये कहां। पहाड़ों से हो रहा पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा है। पलायन का दर्द शहरों से भी बयां हो रहा है। साहित्य में भी पलायन का दर्द उकेरा जाता है और सरकार भी पलायन रोकने की बात करती है। लेकिन पलायन है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। दादी इंतजार अपनों का यह शार्ट फिल्म पलायन के इसी दर्द को बयां कर रही है। इस फिल्म का पहला शो 15 मार्च को राजधानी देहरादून में हो रहा है। यह दर्द की पराकाष्ठा को होकर गुजरकर एक सार्थक संदेश भी देती है। आखिर है क्या इस फिल्म में यह देखने व जानने के लिये यह फिल्म जरूर देखें।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित संस्कृति भवन के सभागार में 15 मार्च को दादी इंतजार अपनों का शार्ट फिल्म को शो हो रहा है। इस फिल्म की स्क्रिप्ट हास्य कलाकारा किशना बगोट ने लिखी है। निर्देशक भी किशना बगोट ही हैं। जबकि निर्माता रितिका पयाल राणा हैं।
इस फिल्म बहुत अलग हटकर है। पलायन पर केंद्रित यह फिल्म लाचार बुढ़ापे की व्यथा की कथा भी पेश करती है। इस बात दादी इंतजार अपनों की निर्माता रितिका पयाल राणा ने बताया कि यह फिल्म पलायन के दर्द को अंदर तक महसूस कराती है। मकसद यह भी है कि पलायन को रोका जाये और इस पर गंभीरता से कार्य किये जायें। उन्होंने अपील की हे कि इस शार्ट फिल्म को जरूर देखें। यह शार्ट फिल्म दादी इंतजार अपनों का जल्द ही NEWS NETRA YUTUBE चैनल पर भी देखने को मिलेगी।