क्या उत्तराखंड के गांव में गरीब मूल निवासी को अपने परिवार का पेट पालने का अधिकार भी नहीं है ??
यह मामला धनौल्टी विधानसभा के मौर्याना टॉप पर, अपने परिवार का पेट पालने के लिए चाय का ठेला लगाने वाले गरीब ग्रामीण दीवान भाई का है, जो उत्तरकाशी जाते हुए यात्रियों को पहाड़ की ठंडी चोटी पर बहुत ही किफायती दाम में चाय बेचने का काम करते हैं लेकिन क्षेत्र के कुछ रसूखदार लोगों को शायद यह रास नहीं आ रहा और उनके कहने पर, वहां के जंगलात के कुछ कर्मचारियों ने उनके चाय की ठेली को, माननीय हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देकर उखाड़ फेंका, जबकि वहीं आस पास क्षेत्र की अन्य दुकानों को हाथ तक नहीं लगाया। गरीब दीवान भाई ने अपने रोजगार को इस तरह खत्म होता देख, स्थानीय विधायक प्रीतम पंवार से भी गुहार लगाई लेकिन विधायक साहब ने भी मदद का आश्वासन देकर और वहां के रेंजर को फ़ोन घुमाकर, अपना धर्म निभाने की औपचारिकता पूरी कर दी। दीवान भाई ने जब परिवार का पेट पालने के लिए एक बार पुनः हिम्मत करके सड़क के किनारे अपनी चाय की ठेली लगाई,तो पुनः जंगलात के वही कर्मचारी उनको धमकाने पहुंच गए और कहने लगे कि यदि सड़क के किनारे भी अपनी ठेली लगानी है तो लोक निर्माण विभाग से लिखवा कर लाओ। अब आप लोग ही बताएं कि जहां एक ओर उत्तराखंड के सभी छोटे बड़े शहरों में सड़कों के किनारे सैकड़ों ठेलियां धड़ल्ले से लगी रहती हैं, वहीं क्या एक गरीब ग्रामीण को अपने गांव की सड़क के किनारे, परिवार के भरण पोषण के लिए एक अस्थाई ठेली लगाकर चाय बेचने का भी अधिकार नहीं है? यह कहां की मानवीयता है ? फैसला आपको करना है 🙏