न्यूज नेत्रा, मीडिया हाउस
उत्तराखंड की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लगातार हार के बाद भी राजनीतिक मोर्चे पर खुद को अब तक ‘जिंदा’ रखा है। लेकिन पहली बार उनके एक बयान से संकेत है कि वह अब अपने सियासी सफर को हस्तांतरित करने के इच्छुक हैं। तो क्या अब मान लेना चाहिए कि ‘हरदा’ का मन भी राजनीतिक विश्राम की तरफ बढ़ चला है!
मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत ने 2016 के सियासी संकट को बखूबी पार किया, लेकिन इस दौर में कांग्रेस बिखर गई। जिसका खामियाजा खुद उन्हें दो जगह किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद भी हार के रूप में भुगतना पड़ा। 2022 के विधानसभा चुनाव में हरिद्वार ग्रामीण से उनकी बेटी अनुपमा रावत ने जीत दर्ज कर पिता की पिछली हार पर कुछ हद तक मरहम लगाया, लेकिन हरीश रावत खुद लालकुआं की सीट नहीं बचा सके।
तीन बार अल्मोड़ा और एक बार हरिद्वार लोकसभा से सांसद रहे हरीश रावत 2014 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने, तो लोकसभा चुनाव में उन्होंने हरिद्वार से उनकी पत्नी रेणुका रावत मैदान में उतरी, जहां से हरीश रावत की हार का सिलसिला शुरू हुआ, जो कि 2022 तक जारी रहा। तमाम पराजयों के बाद भी सियासी मोर्चे पर हरीश रावत अपनी सक्रियता से बताते रहे कि वह अभी हथियार छोड़ने को तैयार नहीं। पिछले लंबे अरसे से हरिद्वार क्षेत्र में उनकी लगतार मौजूदगी इस बात को बताती भी है।
बता दें कि पिछले एक-डेढ साल से पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने भी हरिद्वार सीट पर टिकट के लिए कांग्रेस पार्टी में अपना दावा जताया है। जिससे हरीश रावत के राजनीतिक सफर असमंजस उभर आया। ऐसे में इस सीट पर संभवतः खुद का दावा कमजोर पड़ने के अंदेशे के चलते अब उन्होंने एक नया दांव चला है!
नैनीताल में मीडिया से मुखातिब हरदा ने पहली बार अपने दो बेटों में से एक के लिए हरिद्वार लोकसभा से टिकट की मंशा जताई है। उनके पुत्र आनंद रावत और वीरेंद्र रावत दोनों ही कांग्रेस से जुड़े हैं। आनंद रावत युवा कांग्रेस उत्तराखंड के पहले निर्विरोध अध्यक्ष भी रहे हैं। हरदा संभवतः उन्हें ही अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं। हालांकि टिकट का फैसला कांग्रेस हाईकमान को करना है, लेकिन हरदा के इस बयान से कई मतलब निकाले जाने लगे हैं।
कहा जाता है कि सियासत में कुछ भी असंभव नहीं माना जाता है। हरीश रावत की राजनीति से वाकिफ जानकारों की मानें तो उनके इस बयान से जहां पार्टी में उनके शिष्यों को पसोपेश में डाल दिया है, वहीं एक बात और निकल आई है कि शायद अब हरदा, खुद के ‘राजनीतिक विश्राम’ पर भी सोचने लगे हैं? या फिर वह इस नए दांव में खुद के लिए आगे की संभावनाओं को तलाश रहे हैं? यह कहना फिलहाल मुश्किल है।