किसानों की आय बढ़ाने के साथ रोजगार के तमाम अवसर मुहैया कराने में बनेगी मददगार
सशक्त और आत्मनिर्भर उत्तराखंड की परिकल्पना को साकार करने में पारंपरिक जड़ी-बूटियों की खेती बड़ी मददगार है। जरूरत है प्रदेश सरकार द्वारा इनकी व्यावसायिक खेती, बिक्री एवं खरीददारी को बढ़ावा देने की। इससे न केवल किसान और ग्रामीण आर्थिकी को संबल मिलेगा, बल्कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी पंख लगेंगे। उत्तराखंड की विविध जलवायु और स्थलाकृतिक परिस्थितियां इसे विभिन्न प्रकार के औषधीय और सुगंधित पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल बनाती हैं।
उत्तराखंड की जलवायु अतीष, कौड़ाईस, दारुहरिद्रा (किनगोड़), कीड़ा जड़ी, तुलसी, रतालू, बिच्छू घास (कंडाली), कालमेग, तगर, एलोवेरा, लेमन ग्रास आदि अनेकों जड़ी बूटियों की उच्च गुणवत्ता वाली पैदावार में सक्षम है। जड़ी-बूटियों का उपयोग पारंपरिक आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में देश विदेश में औषधि निर्माताओं द्वारा किया जाता है।
इन औषधीय पौधों की खेती और संग्रहण स्थानीय समुदायों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की आय का अहम स्रोत बन सकता है। इनकी कटाई, प्रसंस्करण और इनकी बिक्री स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार और आजीविका के स्वर्णिम अवसर दे सकती है। प्राकृतिक और हर्बल उत्पादों की वैश्विक मांग तेजी से बढ़ रही है। औषधीय जड़ी-बूटियों और हर्बल अर्क का निर्यात उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मददगार हो सकता है।
जड़ी-बूटियों के व्यावसायिक उत्पादन और बिक्री से उत्तराखंड में हर्बल उत्पाद उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे हर्बल दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और आवश्यक तेलों सहित कई प्रकार के उत्पादों के निर्माण के साथ रोजगार के तमाम अवसर बढ़ेंगे। यह उद्योग जड़ी-बूटियों का उत्पादन कर रहे किसानों को उचित मूल्य मुहैया कराने में मददगार बनेंगे, जिससे ग्रामीण आर्थिकी मजबूत होगी।
जड़ी-बूटियों की खेती का पर्यावरणीय पहलू भी है, जो राज्य में जैव विविधता के संरक्षण को प्रोत्साहित करती है।स्थानीय समुदायों को इन मूल्यवान पौधों के संसाधनों की सुरक्षा और रखरखाव के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। राज्य में औषधीय और सुगंधित पौधों की मौजूदगी “इकोटूरिज्म” को बढ़ावा देगी। जो पर्यटकों को ट्रैकिंग, हर्बल टूर और वेलनेस रिट्रीट के लिए उत्तराखंड की ओर आकर्षित करेगा, जिसका सीधा असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर दिखेगा।
उत्तराखंड की जड़ी-बूटियां “चिकित्सा” और “फार्माकोलॉजी” के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास की गतिविधियों को आकर्षित करती हैं। इससे नए “वानस्पतिक शोधों” और “हर्बल उत्पादों” के व्यवसाय को बढ़ावा मिल सकता है। लेकिन उत्तराखंड में इस जड़ी-बूटी व्यवसाय को समृद्ध रुप से पनपने में सबसे बढ़ी चुनौती है, यहां एक भी जड़ी-बूटी मंडी का न होना, जिस कारण पहाड़ के स्थानीय किसानो को इन उच्च गुणवत्ता युक्त कीमती जड़ी बूटियों के खरीददार और उचित दाम नहीं मिल पाते है। जो पहाड़ी प्रगतिशील किसान हिम्मत करके औषधीय खेती करने का प्रयास करता भी है, तो उसकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिलने पर वह भी कुछ समय बाद हिम्मत छोड़ देता है।
यदि उत्तराखंड सरकार जड़ी-बूटी मंडी की स्थापना करके, इन औषधीय उत्पादों की उनकी गुणवत्ता एवं अंतराष्ट्रीय मूल्यों के आधार पर एम.एस.पी.(न्यूनतम खरीददारी मूल्य) निर्धारित कर दे तो निसंदेह पर्वतीय किसान भी न केवल औषधीय खेती को बड़चड़कर अपनाकर समृद्ध बनेगा बल्कि उत्तराखंड के मेहनती पहाड़ी नौजवानों में मैदानों में पलायन करने की मज़बूरी पर भी बहुत हद तक अंकुश लग जायेगा।
ये करने होंगे उपाय :-
1.किसानों को आधुनिक तकनीकों, टिकाऊ कृषि पद्धतियों और उच्च मांग वाली जड़ी- बूटियों की खेती का प्रशिक्षण।
2. उच्च बाजार मांग वाली और उत्तराखंड की जलवायु के लिए उपयुक्त जड़ी-बूटियों की पहचान कर उनका अनुसंधान।
3.उपज और गुणवत्ता बढ़ाने को नई किस्में और नई पद्धतियों से औषधीय फसलों की पैदावार को बढ़ावा।
4.जड़ी-बूटी सहकारी समितियों या संघों की स्थापना, जो किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करें।
5.किसानों को उनके उत्पाद बेचने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़ा जाए।
6.जड़ी-बूटियों को शोधित कर तेल, हर्बल चाय या हर्बल दवाओं जैसे मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने के लिए प्रोत्साहन।
7.किसानों को प्रीमियम बाजारों तक पहुंचने के लिए जैविक और गुणवत्ता प्रमाणन प्राप्त करने में सहायता।
8.सड़कों, भंडारण सुविधाओं और प्रसंस्करण इकाइयों जैसे ग्रामीण बुनियादी ढांचे।
9.किसानों को बीज, उपकरण खरीदने और कार्यशील पूंजी का प्रबंधन करने के लिए ऋण एवं सब्सिडी।
10.उत्तराखंड की जड़ी – बूटियों के लिए एक ब्रांड और उनकी गुणवत्ता- विशिष्टता का विभिन्न माध्यमों से समुचित मार्केटिंग एवं प्रचार।
11. हर्बल दवाओं या उत्पादों का अध्ययन और विकास करने के लिए अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग।
12. अधिक कुशल रोजगार के अवसर पैदा करने को जड़ी-बूटी प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन में प्रशिक्षण।
13.फसल बीमा और मूल्य स्थिरीकरण जैसी जड़ी-बूटी की खेती को लाभ पहुंचाने वाली सहायक सरकारी नीतियों और सब्सिडी की वकालत।
(इस लेख के विचारक वरिष्ट आयुर्वेदिक चिकित्स, भारतीय चिकित्सा परिषद् उत्तराखंड के पूर्व बोर्ड सदस्य एवं आरोग्य मेडिसिटी इंडिया के संस्थापक डा. महेन्द्र राणा हैं।)