चमोली में अचानक आफत: कुंतरी लग्गा फाली गांव में बारिश और मलबा ने मचाई तबाही, कई लोग घायल और घरों के क्षतिग्रस्त-Newsnetra
देहरादून : गर्मी से राहत और किसानों की आस को पूरा करने वाले बादल उत्तराखंड में फटकर तबाही ला रहे हैं. चमोली जिले के नंदानगर के कुंतरी लग्गा फाली गांव में 18 सितंबर की रात किसी डरावने सपने से कम नहीं गुजरी. आधी रात जब कुंतरी गांव के लोग सुकून से सो रहे थे तब अचानक आसमान से आफत बरसी और गड़गड़ाहट इतनी तेज थी जैसे कोई बम फेंका गया हो या जमीन फटने वाली हो. उस रात को इस आपदा से बचे पीड़ित जिंदगीभर नहीं भूल पाएंगे.
इस आसमानी आफत में मौत से खुद को बचाने वाली 14 वर्षीय मीनाक्षी ने बताया कि वह अपनी बड़ी बहन के ससुराल में रहने के लिए आई थी. आधी रात को अचानक उनके दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. उन्हें इस दस्तक का मतलब समझ में आता उससे पहले ही पानी और मलबा आया और अपने साथ सब कुछ बहाकर ले गया. मीनाक्षी ने बताया कि हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम अपनी जान कैसे बचाएं. वह भागते हुए ऊपर सड़क तक पहुंचीं. वहां भी कुदरत की आफत उनके पीछे लगी रही. इस दौरान बड़ी तादाद में मलबा और पानी मीनाक्षी के ऊपर आ गिरा जिससे उनके सिर और दोनों पैरों में चोट लग गई। ज़ख्मी हालत में भी मीनाक्षी लगभग आधा किलोमीटर दूर ऊपर रास्ते पर जाकर सवेरे होने का इंतजार करती रहीं ताकि उन्हें मदद मिल सके लेकिन यहां भी जंगली जानवरों का खतरा था.
चाय की चाहत में बची जान
वहीं एक महिला भी मौत को चकमा देकर बच निकलीं. उनका नाम है हेमा देवी. हेमा देवी ने बताया कि वह 3 बजे उठीं और चाय बनाने लगीं. तभी उन्हें बहुत तेज आवाज सुनाई दी. इसे देखने के लिए वह किचन से बाहर निकलीं तो पानी और मलबे के साथ मोटे-मोटे पत्थरों का सैलाब उन पर गिर पड़ा. इस दौरान हेमा बुरी तरह चोटिल हुईं… उनके सिर और कमर पर पत्थरों की चोट से गहरे जख्म बन गए. गनीमत रही कि उनके पति और सास भागकर बच निकले. उन्होंने कुछ महीनों पहले ही घर का काम करवाया था और पैसा लगाया था लेकिन उनका आशियाना जमींदोज हो गया.
वहीं एक महिला भी मौत को चकमा देकर बच निकलीं. उनका नाम है हेमा देवी. हेमा देवी ने बताया कि वह 3 बजे उठीं और चाय बनाने लगीं. तभी उन्हें बहुत तेज आवाज सुनाई दी. इसे देखने के लिए वह किचन से बाहर निकलीं तो पानी और मलबे के साथ मोटे-मोटे पत्थरों का सैलाब उन पर गिर पड़ा. इस दौरान हेमा बुरी तरह चोटिल हुईं… उनके सिर और कमर पर पत्थरों की चोट से गहरे जख्म बन गए. गनीमत रही कि उनके पति और सास भागकर बच निकले. उन्होंने कुछ महीनों पहले ही घर का काम करवाया था और पैसा लगाया था लेकिन उनका आशियाना जमींदोज हो गया.
सिर में चोट फिर भी बुजुर्ग ने दिखाई हिम्मत
60 साल की उम्र के बुजुर्ग रघुवीर सिंह ने भी मौत को मात दी. उन्होंने बताया कि ऐसा खौफनाक पहाड़ का रूप उन्होंने कभी नहीं देखा. सामने मानो मौत खड़ी हुई थी. उन्होंने कहा कि उनके मेहमान आए हुए थे और दूसरी मंजिल पर ठहरे हुए थे लेकिन अचानक दूसरी मंजिल मिट्टी में मिलती नजर आई क्योंकि वह खिसकने लगी. उनके सिर सहित शरीर में इतनी चोट लग गई थी कि वह जैसे-तैसे सड़क पर भागे. उनका सिर चोटिल हो गया और दोनों पैरों पर भी गहरी चोटें आईं. उनके परिवार वाले लोगों के ऊपर लिंटर गिरा था जिसे तोड़कर उन्हें बाहर निकाला गया.
60 साल की उम्र के बुजुर्ग रघुवीर सिंह ने भी मौत को मात दी. उन्होंने बताया कि ऐसा खौफनाक पहाड़ का रूप उन्होंने कभी नहीं देखा. सामने मानो मौत खड़ी हुई थी. उन्होंने कहा कि उनके मेहमान आए हुए थे और दूसरी मंजिल पर ठहरे हुए थे लेकिन अचानक दूसरी मंजिल मिट्टी में मिलती नजर आई क्योंकि वह खिसकने लगी. उनके सिर सहित शरीर में इतनी चोट लग गई थी कि वह जैसे-तैसे सड़क पर भागे. उनका सिर चोटिल हो गया और दोनों पैरों पर भी गहरी चोटें आईं. उनके परिवार वाले लोगों के ऊपर लिंटर गिरा था जिसे तोड़कर उन्हें बाहर निकाला गया.
कैसे होगी जिंदगी की नई शुरुआत?
रघुवीर सिंह ने बताया कि पिछले साल ही उन्होंने पैसे जोड़कर दूसरी मंजिल बनवाई थी. लेकिन उनकी जिंदगी भर की पूंजी से बनाया गया उनका घर अब मलबे में तब्दील हो चुका है. पहाड़ों के संघर्ष के बीच जोड़ी गई रकम से रघुवीर सिंह अपने बच्चों के लिए सिर पर छत देना चाहते थे लेकिन उनके जीते-जी वह भी बेघर हो गए हैं. इस उम्र में अपने परिवार के साथ नई जिंदगी की शुरुआत कैसे करेंगे, इस चिंता को उनके माथे पर पड़ी शिकन से समझा जा सकता है.
रघुवीर सिंह ने बताया कि पिछले साल ही उन्होंने पैसे जोड़कर दूसरी मंजिल बनवाई थी. लेकिन उनकी जिंदगी भर की पूंजी से बनाया गया उनका घर अब मलबे में तब्दील हो चुका है. पहाड़ों के संघर्ष के बीच जोड़ी गई रकम से रघुवीर सिंह अपने बच्चों के लिए सिर पर छत देना चाहते थे लेकिन उनके जीते-जी वह भी बेघर हो गए हैं. इस उम्र में अपने परिवार के साथ नई जिंदगी की शुरुआत कैसे करेंगे, इस चिंता को उनके माथे पर पड़ी शिकन से समझा जा सकता है.