न्यूज नेत्रा, मीडिया हाउस
उठा जागा उत्तराखंड्यू सौं खाणौकू बगत ऐगे, उत्तराखंड कू मान-सम्मान बचाणौं बगत ऐगे।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रविवार को सिंग गर्जनाओं की आवाजा से उत्तरांड राज्य आंदोलन की यादें ताजा कर दी है। कहने का सीधा मतलब यह है कि द्रौणनगरी में रविवार को ताकत का अहसास कराया गया।
- संघर्ष समिति की ये भी हैं प्रमुख मांगें
– प्रदेश में ठोस भू कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
उत्तराखंड में मूल निवास प्रमाण पत्र और सशक्त भू कानून को लेकर बड़ा आंदोलन शुरू हो गया है। लंबे अंतराल के बाद उत्तराखंड के लोग बड़े स्तर पर आंदोलित हैं। ये आंदोलन मूल निवास स्वाभिमान महारैली के नाम से किया जा रहा है। राजधानी देहरादून में विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लोग एकत्र होकर इस आंदोलन को मजबूत बनाने की कवायद में जुटे हैं। सीएम आवास का घेराव कर सभी संगठनों ने मांग कि है कि 1950 के मूल निवास को लागू किया जाए। मूल निवास के साथ ही तमाम सामाजिक संगठनों की मांग है कि प्रदेश में सशक्त भू कानून भी लागू हो।
लोगों में गुस्सा इस बात पर है कि सशक्त भू कानून नहीं होने की वजह से राज्य की जमीन को राज्य से बाहर के लोग बड़े पैमाने पर खरीद रहे हैं और राज्य के संसाधन पर बाहरी लोग हावी हो रहे हैं, जबकि यहां के मूल निवासी और भूमिधर अब भूमिहीन हो रहे हैं। इसके साथ-साथ सरकारी नौकरियों में भी उत्तराखंड के मूल निवासी राज्य बनाने का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इसका असर पर्वतीय राज्य की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता और पहचान पर पड़ रहा है। आपको बता दें कि उत्तराखंड एकमात्र हिमालयी राज्य है, जहां राज्य के बाहर के लोग पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भूमि, गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद सकते हैं। वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद से अब तक भूमि से जुड़े कानून में कई बदलाव किए गए हैं और उद्योगों का हवाला देकर भू खरीद प्रक्रिया को आसान बनाया गया है।