Uttarakhand Forest Fire : उत्तराखंड के जंगलों में क्यों लग रही ठंड में आग, क्या कर रहा वन विभाग
उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं सर्दियों मे भी हो रही है. इस पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए वन विभाग ने शोध करने का फैसला किया है।


Uttarakhand Forest Fire : सर्दियों में आग लगने की क्या वजह है ?
सर्दी के बीच पहाड़ में सुलगते जंगलों ने चिंता बढ़ा दी है। विभागीय टीमें आग पर नियंत्रण पा ले रही हैं लेकिन यह प्रश्न भी अपनी जगह कायम है कि सर्दियों में भी जंगल क्यों धधक रहे हैं। इसके पीछे असल कारण क्या हैं। इस सबको देखते हुए विभाग ने अब वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन कराने का इरादा जताया है।उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक(वनाग्नि एवं आपदा प्राबंधन) मान सिंह के अनुसार, जंगल में आग लगने की एक वजह मानव जनित होती है। कई बार ग्रामीण जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं, जिससे उसकी जगह नई घास उग सके। लेकिन आग इस कदर फैल जाती है कि वन संपदा को खासा नुकसान होता है। वहीं, दूसरा कारण चीड़ की पत्तियों में आग का भड़कना भी है। चीड़ की पत्तियां (पिरुल) और छाल से निकलने वाला रसायन, रेजिन, बेहद ज्वलनशील होता है। जरा सी चिंगारी लगते ही आग भड़क जाती है और विकराल रूप ले लेती है।
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उत्तराखंड में करीब 16 से 17 फीसदी जंगल चीड़ के हैं। इन्हें जंगलों की आग के लिए मुख्यतः जिम्मेदार माना जाता है। वहीं, पिछले साल कम बारिश होना भी जंगलों में आग लगने का एक कारण है। उन्होंने बताया कि बारिश न होने या कम होने से जमीन में आद्रता कम हो जाती है।
जिससे पेड़ पौधे जल्दी ही आग पकड़ लेते हैं। हालांकि पिछले साल कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के चलते जंगलों में इंसानी गतिविधियां कम रहीं। इसलिए जंगलों में लगी आग की घटनाओं में भी काफी कमी आई। लेकिन पिछले साल सर्दियों में भी जंगल में आग की घटनाएं देखने को मिलीं हैं।
Uttarakhand Forest Fire :वन विभाग का जंगलों की आग को रोकने के प्रयास
उत्तराखंड में आमतौर पर 15 फरवरी से 15 जून तक के समय को फायर सीजन के नाम से जानते हैं। हर साल उत्तराखंड का वन विभाग जंगलों की आग को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर से कई तरह की तैयारियां करता है। फॉरेस्ट फायर ऑफिसर मानसिंह के अनुसार फायर सीजन से पहले वन विभाग अपनी फायर लाइन निर्घारित कर लेता है और पुरानी फायर लाइन की सफाई की जाती है। क्रो स्टेशन का रखरखाव करके मास्टर क्रू स्टेशन को भी तैयार कर दिया जाता है। पुराने उपकरण की मरम्मत की जाती है और आग बुझाने के लिए आवश्यकता अनुसार नए उपकरण भी खरीदे जाते हैं। इसके अलावा स्टाफ को ट्रेनिंग दी जाती है और जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है। जिसमें वन पंचायतों एवं वन समितियों समितियों और स्थानीय लोगों की भागीदारी को बढ़ाया जाता है।
वन विभाग भी लाचार
वन विभाग भी लाचार बना हुआ है। कई बार बादल छाने के बाद भी बरसात नहीं हो रही है। यदि समय रहते दावाग्नि पर वन विभाग ने नियंत्रण नहीं किया, तो स्थिति ठंड में और भी भयावह हो सकती है। इससे कौसानी,बैजनाथ व ग्वालदम पहुंचने वाले पर्यटकों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
वन क्षेत्रों में क्या नहीं करना चाहिए ?
– आग को कभी भी बिना बुझी न छोड़ें, भले ही आपको लगे कि यह सुरक्षित है
– कभी भी सिगरेट या माचिस न फेंकें और न ही कोई ईंधन सामग्री छोड़ें
– हवा चलने की स्थिति में आग न जलायें
ये जंगल की आग के दौरान व्यवहार के लिए कुछ संक्षिप्त सुझाव हैं। कृपया अपने क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने स्थानीय वन विभाग से संपर्क करें।
Report by – sandhya kumari