आखिर क्यों विलुप्त हो रहा है देव वृक्ष पय्यां धार्मिक अनुष्ठानों के साथ आयुर्वेद में भी है महत्वपूर्ण उत्तराखंड की संस्कृति से भी जुड़ा है इस वृक्ष का महत्व-Newsnetra
रिपोर्ट – दीपक नौटियाल
एंकर- उत्तराखंड देव भूमी जहां कण कण में देवताओं का वास है साथ ही यहां पर पाये जाने वाले वृक्षों को पुराणों एवं उपनिषदों में धार्मिक आधार पर देव वृक्षों की संग्या दी गयी है इसी लिए हम आज बात कर रहे हैं ऐसे वृक्ष की जिसको चंदन एवं भोज पात्र के वृक्ष के समान पवित्र माना गया है
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाया जाने वाला देव वृक्ष पय्यां जिसका वैज्ञानिक नाम प्रुनस सोराईडेसिस है ओर पुराणों में इसे पद्म या पदमख कहा जाता है लगभग तीन से चार हजार फिट की ऊंचाई पर उगने वाले इस पोधे के बारे में सबसे बड़ी खास बात यह है कि जब सर्दियों में अन्य सभी पोधों की पत्तियां सूखकर गिरनी शुरू होती है तो उस समय इस पोधे में फूल लगने सुरू होते हैं ओर वसंत ऋतु तक इसके फूलों से देवताओं की पूजा की जाती है देव भूमी उत्तराखंड में इसका खिलना भारी शुभ माना जाता है
इसके पोंधे की छाल पत्तियां दवाई बनाने के काम में आती है उच्च हिमालई क्षेत्रों में उगने वाले इस वृक्ष पर हमारे ऋषियों आयुर्वेदाचार्यों ने बड़े बड़े शोध कर मानव कल्याण में इसे प्रयोग में लाया है ओषधिय गुणों से अतिरिक्त यह वृक्ष उत्तराखंड में धार्मिक एवं संस्कृतिक रूप में भी बहुत महत्व रखता है यहां पर हर धार्मिक अनुष्ठानों शादी विवाह त्योहार पर इसका किसी न किसी रूप में प्रयोग किया है वहीं बात की जाय संस्कृति की तो उत्तराखंड के संस्कृतिक इतिहास में इस पोंधे पर कहीं गीत लिखे गये है
पर दुखद विषय यह है कि बढ़ती विकास की दोड एवं जलवायु परिवर्तन के कारण यह देव वृक्ष आज बिलुप्ती की कगार पर है अगर समय रहते इसका संम्बर्धन नहीं किया गया तो जल्दी ही यह पोधा हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगा