न्यूज नेत्रा, कमल उनियाल, द्वारीखाल
उत्तराखंड अपनी लोकसंस्कृति लोकपर्व और त्योहारो के लिए जाना जाता है। हर पर्व को यहाँ के लोग हर्षाेल्लास के साथ मनाते हैं संस्कृति को सहजने के लिए यहाँ गिंदी कौथिग को मकर संक्रांति के दिन गेंद के मेले के रुप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को द्वारीखाल विकास खंड के डाडामंडी, देवीखेत यमकेश्वर के थलनदी में भव्य गेंद के मेला का आयोजन होता है। मेला का अर्थ अपनांे का मिलन। कभी दूरसंचार और यातायात की व्यवस्था नहीं थी। तब मकर संक्रांति को लगने वाला ईस कौथिग में दूर दूर गाँवो में विवाहिता बेटियाँ अपने परिजनो से मिलकर भाव विभोर हो जाती थी।
और परिजन भी अपने आँसू नहीं रोक पाते थे। ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध गेंद का मेला थलनदी से ही इस खेल का प्रचलन हुआ। राजस्थान के उदयपुर, अजमेर से आये लोग यहाँ बसे थे। पौरसाणिक कथा अनुसार गिंदोरी नामक बेटी अपने सुसराल से नाराज होकर मायके आयी तो कस्याली और नाली गाँव में झगड़ा हुआ था मायका वाले गिंदोरी को सुसराल नही भेजना चाहते थे सुसराल वाले उसे अपने यहाँ ले जाना चाहते थे इसी झगड़े में उसकी मौत हो गयी।
इस के बाद इस मेले का प्रचलन हुआ। इन मेलो में पन्द्रह से बीस किलो बारह इन्च व्यास की चपटी चमडे के गेंद सिलाई के वक्त गिंदोड नामक पौधा से सिलाई से बनी गेंद से अपने पाले में ले जाने के लिए संघर्ष होता है जिसके पाले में गेंद जाती है वह विजयी हो जाता है। थलनदी मेला उदयपुर पट्टी और अजमेर पट्टी के बीच यह मुकाबला होता है।
इस तरह यहाँ डाडामंडी और देवीखेत गेंद के मेले भी लोग हर्षाेल्लास से मनाते है। देवीखेत मेला समिति के सदस्य यशपाल विष्ट ने बताया कि यहाँ ढोंरी और दिखेत के बीच मुकाबला होता है गेंद को अपने पाले करने के लिए दोनो टीम जमकर संघर्ष करती है। दोनो टीम अपने अपने ध्वज को लेकर मेला स्थान पर पहुँचते है और गेंद को अपने पाले करने के लिए खिलाड़ियों का उत्साह बढाते है। डाडामंडी के स्थानीय निवासी हरेन्द्र रावत ने बताया डाडामंडी गिंदी कौथिग एक ऐतिहासिक मेला है यहाँ लंगूरी और भटपुडी के बीच गेंद को अपने अपने पाले में लाने के लिए जोर अजमाइस होती है।
मेलो में दो दिन पहले से सांस्कृतिक कार्यक्रम खेलो का आयोजन किया जाता है। जिससे प्रतिभाओ को अपने हुनर निखारने का मौका मिलता है।