कल्प केदार मंदिर का रहस्य: जहां मां गंगा स्वयं करती हैं भगवान शंकर का जल अभिषेक, पांडवों द्वारा स्थापित प्राचीन मंदिर-Newsnetra
कल्प केदार जहां मां गंगा प्रति दिन भगवान शंकर का करती है जल अभिषेक पांडवों द्वारा निर्मित इस मन्दिर में 12 महिनें जल मग्न रहता है शिव लिंग पित्र दोस के निवारण के लिए पांडव आये थे यहां केदार नाथ मन्दिर से पुराना है यहां का इतिहास
रिपोर्ट – दीपक नौटियाल
जनपद उत्तरकाशी में मां गंगा के मायके मुखवा गांव के पास धराली गांव में भगवान शंकर का प्राचीन मन्दिर कल्प केदार जिसके बारे में बताया जाता है कि इस मन्दिर की स्थापना पांडवों ने की थी महा भारत के युद्ध के पश्चात जब पांडवों पर पित्र दोस लगा था तो उसी के निवारण करने के लिए वह यहां भगवान शंकर की खोज में आये थे भगवान शंकर तपस्या में लीन थे ओर वह पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इस लिए वह अदृश्य गुफा से होते होते हुए बूढ़े व्यक्ति के भेष में बूढ़ा केदार पहूंचे पांडवों को जब यह पता चला तो वह वहां पहुंच गये वहां से भी भगवान शंकर अदृश्य रूप में केदारनाथ पहुंचे फिर पांडवों ने वहां पर दोनों तरफ पत्थरों के पहाड़ खड़े कर दिए ओर भीम पत्थरों के दोनों छोरों पर पांव पसार कर बैठ गये ओर वहां जो भी जीव जन्तु देवता केदार नाथ जाते तो उन्हें भीम की जांघों के बीच से जाना पड़ता था इससे नाराज़ होकर भगवान शंकर धरती के अन्दर से पशु पति नाथ पहुंच गये तभी से पशुपति नाथ में उनका घड ओर केदार नाथ में उनका वाकी शरीर के दर्शन लिंग के रूप में होते हैं
जिसका उल्लेख स्कंद पुराण में भी उल्लेखित है
कल्प केदार मंदिर केदार नाथ मन्दिर से भी पुराना है शंप्राचीनकाल में शंकराचार्य के सनातन धर्म के पुनरुत्थान अभियान के तहत यहां भी मंदिर समूह स्थापित किये गए। इस समूह में 240 मंदिर थे, लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत में श्रीकंठ पर्वत से निकले वाली खीर गंगा नदी में आई बाढ़ से कई मंदिर मलबे में दब गए। सन 1816 में गंगा भागीरथी के उद्गम की खोज में निकले अंग्रेज यात्री जेम्स विलियम फ्रेजर ने अपने वृत्तांत में धराली में मंदिरों में विश्राम करने का उल्लेख किया है। इसके बाद सन 1869 में गोमुख तक पहुंचे अंग्रेज फोटोग्राफर व खोजकर्ता सैमुअल ब्राउन ने धराली में तीन प्राचीन मंदिरों की फोटो भी खींची, जो पुरातत्व विभाग के पास सुरक्षित हैं।
कल्प केदार मंदिर कत्यूर शिखर शैली का मंदिर है। इसका गर्भ गृह प्रवेश द्वार से करीब सात मीटर नीचे है। इसमें भगवान शिव की सफेद रंग की स्फटिक की मूर्ति रखी है। मंदिर के बाहर शेर, नंदी, शिवलिंग और घड़े की आकृति समेत पत्थरों पर उकेरी गई नक्काशी की गई हैप्राचीन कल्प केदार मंदिर के बारे में यहां के निवासियों द्वारा बताया कि यह गंगा का मूल स्थान (मूल स्थान) था और सदियों से ग्लेशियर वास्तव में 21 किमी गंगोत्री में स्थानांतरित हो गया था! यानी कि ग्लेशियर अब गंगोत्री की तरफ घट गया है।यह सामान्य ज्ञान है कि ग्लेशियर हर साल 5 मीटर पीछे हटता है लेकिन यह एक चौंका देने वाला आंकड़ा था। माना जाता है कि यह मंदिर 5115 साल पुराना है, जिसे पांडवों ने बनवाया था। अग्रभाग को सजाना सूर्य, सूर्य देवता या कालभैरव, शिव के उग्र परिचारक का एक पेचीदा चेहरा था।
पहले मंदिर गंगा को देखता था लेकिन तब से डूब गया था। 1802 की एक प्रसिद्ध तस्वीर में हम पार्वती और गणेश के मंदिरों को देख सकते हैं, जो 1895 के हिमनदी बदलाव में नष्ट हो गए थे, जिसने जांगला से सुखी तक 18 किमी की दूरी को भी समतल कर दिया था। 1935-38 के बीच एक और हिमनदी बदलाव ने कल्प केदार मंदिर को जलमग्न कर दिया, जिसमें केवल शिखर दिखाई दे रहा था। 1980 में मंदिर की आंशिक खुदाई की गई थी लेकिन 6 फीट अभी भी पानी के नीचे है। पुजारी ने हमें बताया कि प्रत्येक श्रावण में, गंगा भगवान शिव के पास आती है और पंच मुखी लिंगम को एक यज्ञ के रूप में धोती है, जबकि शुष्क मौसम में, जलमग्न मंदिर जादुई रूप से फिर से प्रकट हो जाते हैं।
पांडवों ने हत्या (हत्या) के पाप को दूर करने के लिए एक छोटे जल प्रवाह में पवित्र डुबकी लगाई, इसलिए इस नदी का नाम हत्याहरिणी पड़ा यहां शिवलिंग 12 महिनों जलमग्न रहता है ओर केवल सावन के महिनें शिवरात्रि के दिन इस मन्दिर के गर्भगृह में पूजा अर्चना की जाती है मां गंगा स्वयं भगवान शिव के जला अभिषेक करने यहां आती है
पीटीसी – दीपक नौटियाल संवाददाता उत्तरकाशी