वन संरक्षण पर सवाल : 188 हेक्टेयर जंगलों में जेसीबी, CAG Report 2025 में चौंकाने वाला खुलासा-Newsnetra
CAG Report 2025 कैग रिपोर्ट 2025 में उत्तराखंड के वन भूमि हस्तांतरण और क्षतिपूरक वनीकरण में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2022 तक 52 ऐसे प्रकरण सामने आए हैं जिनमें मानकों को पूरा किए बिना ही निर्माण कार्य शुरू करा दिए गए। वन भूमि के अनधिकृत उपयोग का अधिकारियों ने कोई संज्ञान नहीं लिया। उत्तराखंड में बेशक 72 प्रतिशत से अधिक भूभाग का स्वरूप वन है। इसके चलते विकास की गुंजाइश कम रहती है और वनों पर दबाव उतना ही अधिक बढ़ जाता है। फिर भी विकास बनाम विनाश के बीच सामंजस्य को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट पर गौर करें तो वन भूमि हस्तांतरण से लेकर क्षतिपूरक वनीकरण के कार्यों में बड़े स्तर पर अनदेखी देखने को मिली है।
2014 से 2022 तक वन भूमि से जुड़े विकास कार्यों का किया परीक्षण
कैग ने प्रतिकारक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) के तहत वर्ष 2014 से 2022 तक वन भूमि से जुड़े विकास कार्यों का परीक्षण किया। रिपोर्ट में 52 ऐसे प्रकरणों का जिक्र किया गया है, जिसमें मानकों को पूरा किए ही निर्माण कार्य शुरू करा दिए गए। इन मामलों में सिर्फ वन भूमि हस्तांतरण की सिर्फ सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की गई थी।
सक्षम अधिकारी की ओर से कार्य शुरू करने की अनुमति न मिलने के बाद भी संबंधित एजेंसियों ने वन भूमि का कटान शुरू कर दिया। गंभीर यह कि वन भूमि के अनधिकृत उपयोग का अधिकारियों ने कोई संज्ञान नहीं लिया और इन्हें वन अपराध के रूप में भी दर्ज नहीं किया।


इसी तरह एक मामले में प्रभागीय वनाधिकारी ने अपने अधिकार से बाहर जाकर वन हस्तांतरण की अंतिम स्वीकृति प्रदान कर दी गई। यह मामला टौंस (पुरोला) वन प्रभाग से जुड़ा है। यहां 1.03 हेक्टेयर वन भूमि को अनाधिकृत रूप से हस्तांतरित कर दी गई।
भूमि को सितंबर 2022 में उत्तरकाशी में हुडोली-विंगडेरा-मल्ला मोटर मार्ग के लिए हस्तांतरित किया गया था। असल में इसकी स्वीकृति केंद्र सरकार को देनी थी। निर्माण एजेंसियों के प्रति वन विभाग का यह प्रेम वन्यजीव शमन योजना में भी समाने आया। जिसमें प्रभागीय वनाधिकारी नरेंद्रनगर ने 22.51 करोड़ रुपए की राशि की मांग उपयोगकर्ता एजेंसी से तब मांगी, जब अंतिम स्वीकृति प्राप्त हो गई।
नियमों के अनुसार इसकी मांग सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद और काम शुरू करने से पहले कि जानी थी। कुछ यही स्थिति प्रभागीय वनाधिकारी हरिद्वार कार्यालय में भी सामने आई। यहां 2.08 करोड़ रुपए अंतिम स्वीकृति के बाद मांगे गए। इस रहमदिली का असर यह हुआ कि परीक्षण के दौरान तक भी दोनों मामलों में रकम को जमा नहीं कराया गया था।
वन भूमि हस्तांतरण की स्थिति (2014 से 2022)
कुल प्रकरण, 2144
प्रकरण में शामिल भूमि, 15083 हेक्टेयर
अंतिम स्वीकृति, 679 प्रकरण (3947 हेक्टेयर)
सैद्धांतिक स्वीकृति, 782 प्रकरण (2025.97 हेक्टेयर)
लंबित प्रकरण, 683 प्रकरण (9110.36 हेक्टेयर)
जो पौधे लगाए, उसमें सिर्फ 33 प्रतिशत रहे जिंदा
कैग रिपोर्ट में वन विभाग में वृक्षारोपण की स्याह हकीकत भी हुई उजागर
विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट में क्षतिपूरक वनीकरण की स्याह हकीकत भी उजागर हुई। कैग ने मार्च 2021 में वन विभाग को सौंपी गई वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की रिपोर्ट का भी अवलोकन किया।
रिपोर्ट के अनुसार वृक्षारोपण के क्रम में पौधों की कुल जीविवितता 60 से 65 प्रतिशत होनी चाहिए। वन विभाग के मामले में पाया गया कि वर्ष 2017 से 2020 के बीच जो क्षतिपूरक वनीकरण किया गया है, उसमें से सिर्फ 33.51 प्रतिशत पौधे बच पाए हैं। यह वनीकरण 21.28 हेक्टेयर भूमि पर 22.08 लाख से किया गया था।