देहरादून के ऐतिहासिक दशहरे पर पॉलिटिक्स की छाया: बन्नू बिरादरी में विभाजन, पहली बार जलेंगे दो रावण
देहरादून का दशहरा हर साल परंपराओं और उत्सव के रंगों में डूबा होता है, लेकिन इस बार इस ऐतिहासिक आयोजन में राजनीति और आंतरिक मतभेद हावी होते नजर आ रहे हैं। बन्नू बिरादरी, जो पिछले 77 वर्षों से देहरादून में दशहरे का सबसे बड़ा आयोजन करती आ रही है, इस बार दो भागों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। इसके परिणामस्वरूप, पहली बार देहरादून में दो-दो रावण जलाने की योजना बनाई गई है, जिससे शहर में दशहरे की फिजा में असामान्य स्थिति उत्पन्न हो गई है।
दशहरे का ऐतिहासिक महत्व और बन्नू बिरादरी की भूमिका
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देहरादून का दशहरा बन्नू बिरादरी के माध्यम से आयोजित किया जाता रहा है। हर साल, परेड ग्राउंड में भव्य रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाए जाते हैं और हजारों की भीड़ इस पौराणिक दहन को देखने के लिए जुटती है। यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्साह का प्रतीक है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित उच्चस्तरीय राजनीतिक हस्तियां भाग लेती हैं। इसके साथ ही आम जनता भी इस महोत्सव को बड़े उत्साह से मनाती है।
पहली बार दो रावण जलाने की नौबत
हालांकि, इस वर्ष दशहरे के आयोजन में एक अप्रत्याशित मोड़ आया है। बन्नू बिरादरी, जो दशहरे के इस महापर्व को संगठित करती आई है, इस बार आपसी मतभेदों के कारण विभाजित हो गई है। बिरादरी के अध्यक्ष हरीश विरमानी का कहना है कि पिछले 77 वर्षों से परेड ग्राउंड में यह आयोजन लगातार किया जा रहा है। यह कार्यक्रम स्वर्गीय लक्ष्मण दास विरमानी के नेतृत्व में शुरू हुआ था, जिन्होंने 1978 में पहली बार रावण दहन की परंपरा को जीवंत किया था। तब से हर साल इस कार्यक्रम के लिए एक विशेष दशहरा कमेटी बनाई जाती है, जिसमें अध्यक्ष का चयन किया जाता है।
दशहरा कमेटी के गठन को लेकर मतभेद
हाल के वर्षों में संतोष नागपाल को लगातार 11 वर्षों से दशहरा कमेटी का अध्यक्ष बनाया जा रहा था। हालांकि, इस वर्ष बन्नू बिरादरी ने निर्णय लिया कि इस बार दशहरा कमेटी न बनाकर, पूरा आयोजन बिरादरी के संयुक्त प्रयासों से किया जाएगा। लेकिन इस फैसले से बिरादरी के भीतर असंतोष उभर आया, जिसके कारण अब दो अलग-अलग समूहों द्वारा दो स्थानों पर रावण दहन की योजना बनाई जा रही है।
प्रशासन और पुलिस के सामने चुनौती
इस विभाजन ने न केवल बिरादरी के बीच तनाव पैदा किया है, बल्कि देहरादून प्रशासन और पुलिस के लिए भी एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। दशहरे जैसे विशाल आयोजन को एक साथ दो अलग-अलग स्थानों पर व्यवस्थित करना एक कठिन कार्य है, और प्रशासन इस बात की तैयारी कर रहा है कि कहीं इस विभाजन के कारण कानून-व्यवस्था में कोई गड़बड़ी न हो।
भविष्य में एकता की संभावना?
यह दशहरा देहरादून के लिए एक असाधारण घटना के रूप में दर्ज किया जाएगा। पहली बार बन्नू बिरादरी में इस प्रकार का विभाजन देखा जा रहा है, जिसने दशहरे के पवित्र पर्व पर राजनीति और मतभेदों का साया डाल दिया है। हालांकि, भविष्य में बिरादरी के दोनों गुटों के बीच सुलह की संभावना हो सकती है, जिससे यह पारंपरिक आयोजन पुनः अपनी पुरानी गौरवशाली परंपराओं में लौट सके।
देहरादून के लोग इस बार के दशहरे का अनुभव कुछ अलग करेंगे, जहां एक ही शहर में दो अलग-अलग रावण जलेंगे, लेकिन उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह विभाजन समाप्त हो जाएगा और बिरादरी फिर से एकजुट होकर इस भव्य आयोजन को सफलतापूर्वक अंजाम देगी।