संभल की हिंसा: मस्जिद-मंदिर की राजनीति से झुलसती जिंदगी-Newsnetra


संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा ने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है। रविवार सुबह जब कोर्ट कमिश्नर रमेश सिंह राघव की अगुवाई में सर्वे टीम प्रशासन और पुलिस बल के साथ मस्जिद पहुंची, तो वहां भारी भीड़ जमा हो गई। सर्वे की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए भीड़ ने हंगामा करना शुरू कर दिया। जल्द ही यह हंगामा पथराव और फायरिंग में बदल गया, जिससे पुलिस और प्रशासन को स्थिति काबू में लाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। हिंसक भीड़ ने चंदौसी के सीओ की गाड़ी सहित कई वाहनों में तोड़फोड़ की और उन्हें आग के हवाले कर दिया। इस बवाल में तीन लोगों की मौत हो गई, जबकि 20 से अधिक पुलिसकर्मी और कई स्थानीय लोग घायल हो गए।
हिंसा के बाद प्रशासन ने जिले में अगले 24 घंटों के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं और कक्षा आठ तक के सभी स्कूलों को बंद करने के निर्देश दिए। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, लेकिन हिंसा का दायरा बढ़ता गया। मुरादाबाद और आसपास के जिलों से अतिरिक्त पुलिस बल बुलाया गया, जिसके बाद हालात को नियंत्रण में लाया जा सका।
घटना के बाद स्थानीय निवासियों ने धर्म के नाम पर फैलाई जा रही नफरत और हिंसा को लेकर गहरी नाराजगी जताई। एक निवासी ने कहा कि उन्हें मस्जिद या मंदिर की जरूरत नहीं, बल्कि शांति और भाईचारा चाहिए। कारोबार ठप हो जाने और जिंदगी ठहर जाने से उनके लिए अपनी जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर मस्जिद-मंदिर के नाम पर लोगों को बांटने की यह राजनीति कब खत्म होगी।
यह घटना समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण के बढ़ते प्रभाव और प्रशासनिक चुनौतियों को उजागर करती है। ऐसी घटनाओं से बचने के लिए प्रशासन को अधिक सतर्कता और संवाद के साथ काम करना होगा। वहीं, समाज को यह समझने की जरूरत है कि नफरत के इस खेल में सबसे अधिक नुकसान आम जनता का होता है। अब समय आ गया है कि मस्जिद-मंदिर के नाम पर लड़ने की बजाय शांति और भाईचारे को बढ़ावा दिया जाए, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।